खरी-खरी: सऊदी के शहजादे सलमान के ये फैसले पूरे इस्लामी जगत में उत्पन्न कर सकते हैं एक सामाजिक क्रांति!
शहजादा मोहम्मद बिन सलमान ने सन 2015 में जिस समय सऊदी अरब के कार्यवाहक शासक के रूप में देश की बागडोर संभाली थी, उस समय सभी आश्चर्यचकित रह गए थे कि भला 29 वर्षीय नौजवान इस्लामी जगत के सबसे महत्वपूर्ण देश को कैसे चला पाएगा!
ऐसे बहुत सारे सवाल थे जिन पर सऊदी अरब के अंदर और बाहर चर्चा होने लगी थी। फिर देश में सत्तासीन होते ही उनके संबंध में मानव अधिकार के मुद्दे उठ खड़े हुए। शहजादा सलमान ने सबसे पहले स्वयं अपने उन सगे संबंधियों को नजरबंद कर दिया जो उनका विरोध कर सकते थे। साथ ही सऊदी पत्रकार अदनान खाशोगी की निर्मम हत्या का मामला सारी दुनिया में चर्चित हो उठा।
इस परिप्रेक्ष्य में प्रिंस सलमान से नाउम्मीदी कुछ गहरी हो गई। लेकिन बीच-बीच में इस आशय के समाचार आते रहे कि वह देश में कट्टरपंथी मुल्ला ग्रुप की पकड़ ढीली कर रहे हैं। लेकिन अभी कोई दो सप्ताह पूर्व यह समाचार आया कि सुन्नी वहाबी देश सऊदी अरब और शिया मुल्लाओं का देश ईरान जल्द ही एक दूसरे के देशों में दूतावास खोलेंगे। उससे भी आश्चर्यजनक बात यह थी कि इस फैसले की घोषणा चीन से हुई क्योंकि सऊदी एवं ईरान के बीच संबंध सुधारने की मध्यस्थता चीन ने की थी। यह एक ऐसी अनहोनी थी जिसने पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। भला सऊदी अरब जैसा अमेरिकी पिट्ठू देश का चीन से क्या लेना-देना क्योंकि सऊदी अरब के बारे में यह धारणा थी कि सऊदी विदेश नीति वाशिंगटन में ही लिखी जाती है। ऐसा देश भला चीन के साथ इतने गहरे रिश्ते कैसे बना सकता है। जाहिर है कि यह फैसला खुद शहजादा मोहम्मद बिन सलमान का फैसला था। इस फैसले द्वारा प्रिंस सलमान ने इस बात की भी घोषणा कर दी कि अब सऊदी विदेश नीति अमेरिकी हितों में नहीं बल्कि स्वयं सऊदी हितों के परिप्रेक्ष्य में होगी।
यह केवल सऊदी अरब ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर में मानो एक क्रांति थी। सबसे पहले तो यह अब तय था कि अमेरिका की पकड़ दुनिया में ढीली होती जा रही है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि 21वीं शताब्दी में मुस्लिम जगत में एक नई स्थिति उत्पन्न हुई है और वह यह धारणा है कि अब यह देश अपनी तरक्की के नए रास्ते खोज रहे हैं। तीसरी अहम बात यह थी कि अरब एवं ईरान के करीब आने से मुस्लिम जगत की एकजुटता बहुत बढ़ सकती है।
सऊदी विदेश नीति में यह तब्दीली निःसंदेह एक खामोश क्रांति से कम नहीं है। इसका श्रेय प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को जाता है जिन्होंने देश की दशकों पुरानी विदेश नीति को एक नया मोड़ दे दिया। सऊदी अरब मुस्लिम जगत का सबसे महत्वपूर्ण देश है। इसका प्रभाव भी अधिकांश इस्लामी देशों पर पड़ेगा।
यह अमेरिका के लिए एक बुरी खबर है कि 21वीं शताब्दी में मुस्लिम जगत अब उसके प्रभाव से दूर हो रहा है। इनमें से तेल की दौलत में डूबे अरब देश के व्यापारी संबंध भी अब बदलेंगे और चीन के साथ उनके व्यापारिक संबंध और गहरे होंगे। भविष्य में यह एक नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को जन्म दे सकता है जिससे अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचेगा। सारांश यह है कि प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान एक तो नए अंतरराष्ट्रीय वर्ल्ड आर्डर के एक अहम प्लेयर होंगे। प्रिंस सलमान के इस फैसले से केवल उनका कद ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में उनके प्रति सम्मान भी बढ़ गया।
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने केवल देश की विदेश नीति में ही परिवर्तन नहीं किया है बल्कि सऊदी अरब में ऐसे सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत की है जिससे सऊदी समाज में कट्टरपंथ को झटका लगेगा। प्रिंस सलमान ने देश की ‘मोरल पुलिस’ की व्यवस्था समाप्त कर सऊदी समाज में एक खुलेपन का एहसास उत्पन्न किया है। इसके साथ-साथ उन्होंने देश में सिनेमाघरों को खोलकर एक नई सऊदी मनोरंजन नीति की शुरुआत की है जो 21वीं शताब्दी की सऊदी युवा पीढ़ी की इच्छाओं के अनुकूल है।
इसके अलावा सऊदी समाज के आधुनिकीकरण के लिए सऊदी औरतों को भी आजादी देने की परंपरा आरंभ कर दी। वह सऊदी औरत जो कल तक बगैर किसी एक सगे संबंधी के संरक्षण के घर से बाहर नहीं निकल सकती थी, वह अब अकेले कहीं भी आ-जा सकती है। इसी के साथ अब सऊदी महिला स्वयं ड्राइविंग कर आजाद घूम सकती है। इस तरह के फैसले सऊदी समाज में एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत करेंगे। सऊदी समाज को एक सामाजिक क्रांति से जोड़ने का श्रेय भी प्रिंस सलमान को ही जाता है।
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान एक नए विजन के साथ काम कर रहे हैं। वह सऊदी समाज को आधुनिकता से जोड़ रहे हैं। यह केवल सऊदी समाज की ही नहीं बल्कि पूरे इस्लामी जगत की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत है। मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि इसने अभी तक आधुनिकता को पूर्ण रूप से गले नहीं लगाया है। वह चाहे सऊदी समाज हो या भारतीय मुस्लिम समाज- हर जगह अभी तक कबीलाई अथवा सामंतवादी सामाजिक मूल्यों का ही चलन है।
यही कारण है कि मुस्लिम जगत में कट्टरपंथ अभी भी पनप रहा है। प्रिंस सलमान ने जिस प्रकार सऊदी अरब में आधुनिकता को हवा दी है, उससे केवल सऊदी अरब ही नहीं बल्कि सारे मुस्लिम जगत पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। सऊदी अरब केवल एक मुस्लिम देश ही नहीं बल्कि वह इस्लाम धर्म का जन्म स्थल भी है। यहीं हजरत मोहम्मद ने इस्लाम धर्म की स्थापना की थी। आज भी मुसलमानों के दो सबसे अहम धर्मस्थल मक्का और मदीना सऊदी अरब में ही हैं। फिर भी सऊदी अरब तेल की दौलत में डूबा हुआ है जिससे मुस्लिम जगत पर इसका गहरा प्रभाव है। निःसंदेह सऊदी समाज में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव पूरे इस्लामी जगत पर होगा।
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने सदियों से गहरी नींद में डूबे मुस्लिम जगत को गहरी नींद से झिंझोड़ दिया है। उनकी विदेश एवं देश नीति केवल सऊदी अरब ही नहीं बल्कि पूरे इस्लामी जगत में एक सामाजिक क्रांति उत्पन्न कर सकती है जिसका श्रेय इस नौजवान प्रिंस को जाएगा।